Sunday, April 15, 2012

TU HI MERA SARA JAHAN HAI

डिअर पार्क में आये मुझे करीब करीब आघा घंटा हो चुका था लेकिन निशांत का अभी तक नहीं आया था .मै बार बार अपनी कलाई पर बंधी घडी को देखती और खुद को ही पांच मिनट का समय और देती की शायद अब मेरे इंतज़ार करतीबेबस ,दर्शनअभिलाषी अंखियो को निशांत की एक झलक दिख जाये और मेरी बैचैन निगाहों को सुकून मिल जाये.
ऐसा करते करते मुझे एक घंटा से भी ज्यादा का समय हो गया मगर वो न आया ,खैर ये   कोई पहली बार तो हुआ नहीं था ,हर बार की यही कहानी थी क्यूंकि निशांत को ये पता था की मै उससे किस हद तक प्यार करती हूँ ,दुनिया इधर की उधर हो जाये पर मै निशांत को बिना देखे ,बिना दो बोल बोले मै तो मर भी नहीं सकती फिर चली कैसे जाती और शयद वो इसलिए वो मुझे इस कदर सताता है या मेरे प्यार की परवाह नहीं करता है और वैसे भी अगर किसी को ये पता चल जाये की कोई उससे किस कदर मोह्हबत करता है तो शायद सामने वाला निश्चिंत हो जाता है और स्थिर भी.
तभी निशांत मुझे आता दिखा ,मेरे चेहरे पर मुस्कराहट के उभर आये ,आखिर प्यासे को क्या चाहिए ,दो बूंद पानी ,परन्तु ख़ुशी का एहसास गायब भी हो गए क्यूंकि तभी मेरे दिल ने ये कहाँ की देखो तो भला कितना इंतजार करके आया है इसलिए मैंने भी अपने चेहरे पर नाराजगी के भाव दर्शा  दिए
आई ऍम सॉरी ,सोनिया ,मै फिर से लेट हो गया लेकिन इस में मेरी कोई गलती नहीं हैमै तो समय से निकल रहा था की तभी बॉस ने एक और काम दे दिया और उसी को निबटाते निबटाते मै लेट हो गया.परन्तु मैंने कुछ नहीं कहा   .निशांत  समझ गया था की मै गुस्से में हूँ इसलिए वो बोले ही जा रहा था .
अरे यार अब तो गुस्सा छोड़ो ,देखो वैसे भी हमारे पास मिलाने -बैटने के लिए कितना काम वक्त होता है और जो मिला है तुम उसे भी नाराजगी के भेंट चढ़ा कर बर्बाद कर  रही हो .यह सुनते ही मेरा बनावटी गुस्सा भी भी फुर्र हो गया ठीक वैसे ही जैसे koiudरोते हुए बच्चे को कहता है ,ये देखो ,ये देखो चिड़िया आकाश में उड़ रही है और मासूम बच्चा अपना रोना भूलकर चिड़िया देखने लग जाता है .मेरा गुस्सा शांत इसलिए भी हो गया क्यूँकि ये तो सच था ,हमारे पास एक -दुसरे के लिए समय निकाल पाना वाकई में बहुत मुश्किल होता था क्यूँकि हम दोनों ही नौकरी करते थे.
मैंने फिर भी थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा "क्यों मेरे लिए ही टाइम नहीं होता है न औरो के लिए समय ही समय था "
"नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है तुम भी न कभी कभी सब कुछ समझते हुए भी मुझे चोट पहुंचा देती हो "निशांत ने ये लब्ज जितने शांत लहजे से कहा था मुझे मेरी गलती का अहसास उतना ही तीव्र हुआ था भला मैंने निशांत के दिल को दुखाने वाली बात कैसे कह दी मै तो उसके चहरे की एक मुस्कान के लिए अपनी जान तक लुटा दु.
**************************************************************************************************************************************************************************************************************************
दरअसल मेरी और निशांत की लव स्टोरी की शुरुआत निशांत और शीतल के ब्रेक अप से हुआ था .शीतल और मै एक ही ऑफिस में एक साथ काम करते थे शीतल बहुत ही सुन्दर पर घमंडी थी .किसी का दिल शीतल पर फ़िदा  हो   जाये ये कोई ताजुब की बात नहीं थी और शीतल और शीतल किसी का दिल बड़ी बेदर्दी से तोड़ दे तो ये भी कोई ताजुब की बात नहीं थी .शीतल की खूबसूरती के दीवाने एक नहीं कई थे उन में से ही एक था निशांत .
निशांत रोज ही किसी न किसी बहाने से शीतल से मिलने आ जाता था .शीतल भी उसके आने पर उसे इज्जत देती ,अच्छे वयवहार से पेश आती .दरअसल निशांत किसी कंपनी का एम्पलोयी था और हमारी कंपनी वेबसईट बनता थी ,इसी सिलसिले में उन दोनों की पहली मुलाकात हुई जो प्यार में बदल गई .शुरुआत में तो शीतल उससे खूब प्यार भरी बाते करती थी लेकिन कुछ ही दिनों के बाद शीतल के ऊपर से प्यार का भुत उतर गया जैसे गधे के सिरसे सिंग गायब हो जाता है इसकी वजह ये थी की शीतल को ये पता चल गया था की निशांत की तनख्वाह मात्र दस हजार प्रति माह है .शीतल ने तो अपने कदम आगे बढा दिया था लेकिन निशांत वहीँ खड़ा रह गया था और निशांत की यही सच्चाई मुझे भा गई और मैंने उसकी तरफ दोस्ती का हाँथ बढा दिया और जिसे निशांत ने सहर्ष स्वीकार कर लिया
                                                                                                     
   हमारी दोस्ती उसकी दोस्ती और मेरा प्यार था .मै उसे हरसंभव समझाती थी की शीतल तुम्हारे लायक नहीं है तुम उसका ख्याल दिल से निकाल दो .परन्तु वो कहते है न प्यार तो दीवाना होता है और दीवाने कब किसी की राय से सहमत होते है,और ऐसा ही हाल तो मेरा था निशांत के लिए.निशांत अब  शीतल का प्यार पाने के लिएउसे मानाने के लिए महंगे से महंगे तोहफे उपहार में देत था ,बढ़िया से बढ़िया रेस्टोरेंट में लंच करता ,थियेटर में सिनेमा दिखता था और तो और इन सब के लिए तो कभी कभी वो मुझ से ही पैसे उधार कह कर लेता था जिसे उसने कभी वापस करने की जेहमत नहीं उठाई ,हालाँकि मै भी उस से कभी  वापस लेने की उम्मीद से नहीं देती थी क्यूंकि ये मेरी मोहबत की दीवानगी थी निशांत के प्यार में और दीवानों की तो एक ही लगन होती है अपने प्यार को खुश करने की चाहत ,उनका सानिध्य पाने की ख्वाइश और अपने प्यार की ख़ुशी में ही खुश होने की आदत.यही हाल था निशांत का शीतल के लिए और यही हाल मेरा था निशांत के लिए .हम दोनों एक ही भावनाओ की नदी के उफान में किस्मत की नैया के  सहारे चल रहे थे
,इस उम्मीद के साथ की शायद किसी दिन तो निशांत और मेरी चाहतो की धारा किसी समुन्दर की गहराई में गिर कर मिल जाएगी और हम एक हो जायेंगे
वो दिन तो आना ही था इसका मुझे यकीं था क्यूंकि शीतल ने किसी बहुत अमीर ,पैसे वाले का हाँथ थम लिया और आगे निकल गई ,निशांत वाही अकेला खड़ा रह गया
************************************************************************************************************************************************************************************************************************
उस दिन भी डिअर पार्क का ही वो स्थान था जहाँ निशांत फुट फुट कर रो रहा था और मै उसे दिलासा देने की हर संभव प्रयास कर रही थी तभी कुछ किन्नर वहां आ गए और अपने ही अंदाज में कहने लगे "वाह वाह क्या सुन्दर जोड़ी है भगवान तुम्हारी जोड़ी बनाये रखे ,क्या सुन्दर लड़का है क्या सुन्दर लड़की है ,हम तुम्हे आशीर्वाद देते है की तुम दोनों की जोड़ी हमेशा सलामत रहे ,तुम लोग हमेशा खुश रहो, चलो बाबूजी अब रुपए निकालो "
निशांत ने पता नहीं क्या सोच कर उन्हें सौ रुपए का नोट दे दिया और कहा "दुआ करो की जिसकी जोड़ी बनी है सलामत रहे "
मै समझ गई थी की ये किस जोड़ी के लिए दुआं मांगने की गुजारिश की जा रही है आखिर दिल तो बच्चा है जी *********************************************************************************************************************************************************************************************************************************
फिर हम अक्सर पार्क में मिलने लगे और यु ही मिलते मिलते हम दोस्ती से प्यार की सीढ़ी चढ़ने लगे .वो कहते है की किन्नरों की दुआओं में बहुत असर होता है इसलिए जब भी वो मेरे पास आते मै उन्हें हमेशा पैसे देती और उन से अपने प्यार के लिए खूब दुआएं बटोर लेती .
एक दिन एक किन्नर ने मुझ से पूछा "तुम उसकी क्या लगाती हो "
मैंने कहा "अभी तो प्रेमिका हूँ ,पत्नी बनना चाहती हूँ"
उस किन्नर ने मुझे बहुत आशीर्वाद दिया और कहा की शादी में जरुर बुलाना .
********************************************************************************************************************************************************************************************************************************
 जिसका मुझे इतनी बेसब्री से इंतज़ार था आखिर वो दिन भी आ ही गया ,निशांत ने मुझ से शादी करने की इच्क्षा जाहिर की जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया .निशांत अपने माता -पिता की सहमति और आशीर्वाद लेने के लिए अपने गावं जाना चाहता था .मै बहुत खुश थी आखिर भगवान ने मेरी सुन ली थी मुझे मेरी मंजिल मिल गई थी ,वो बहुत कम खुशनसीब होते है जिनको मनचाहा जीवन साथी मिल जाता है .मै आज उन खुशनसीबो में से एक होने जा रही थी .निशांत जा रहा था मेरी आँखे नाम थी ,भींगी पलकों के साथ मैंने उसे विदा किया इस उम्मीद के साथ  की अगली बार मै भी उसके साथ जाउंगी .
*********************************************************************************************************************************************************************************************************************
निशांत अपने घर गया वहां उसने परिवार  के सामने अपने दिल की बात रखी जिसे उसके परिवार ने सहर्ष स्वीकार कर लिया .निशांत ने अपने मम्मी -पापा से मेरी भी बात करवाई .हम सब बहुत खुश थे
आज मै फिर डिअर पार्क गई वहां मैंने किन्नेरो में रूपए बांटे और अपनी ख़ुशी भी क्यूंकि अब मै प्रेमिका से पत्नी बनने जा रही हूँ.
********************************************************************************************************************************************************************************************************************
आज निशांत वापस दिल्ली आ रहा था .शाम तक उसकी ट्रेन आएगी इसलिए आज खुद को सजाना सवारना चाहती थी अपने सजना के लिए सो मै एक ब्यूटी पार्लर चली गई .वहां T.V चल रहा था कोई लाइव न्यूज़ आ रहा था ,वहां उपस्थित सभी लोग टकटकी लगाय बड़े परेशान मुद्रा में  टेलीविजन की ओर देख रहे थे इसलिए अनायास मेरी भी नजर उधर आकर्षित हुए बीना रह नहीं पाई ,न्यूज़ में बता रहे थे की कोई  ट्रेन बहुत ही भयानक तरह से दुर्घटनाग्रस्त हुआ है ,तीन बोगियां बुरी तरह से जल कर खाक हो गई है ,सैकड़ो लोग घायल हुए है कई लोगो के मारे जाने की आशंका जताई जा रही थी ,चारो तरफ अफरा -तफरी का वातावरण था ,बहुत ही ह्रदय विदारक दृश्य था .हे !भगवन  ये तो वाही ट्रेन था जिससे निशांत वापिस आ रहा था ,मेरे सर के उपरी सतह पर जैसे कुछ करंट सा महसूस हुआ और मई बेहोश हो गई .थोड़ी देर बाद जब होश आया तो खुद को कई अनजान चेहरों  के बीच खुद  सोफे पे पड़ा पाया .थोड़ी देर में अपनी मनोदशा पर काबू पते हुए अपने आप को इस लायक बनाया की कम से कम मोबाईल पर संपर्क स्थापित करू .दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था ,कोई अनहोनी की आशंका ने  शारीर को इतना दुर्बल बना दिया था की खुद अपने पाँव पर खड़ा होना भी मुस्किल लग रहा था ,लेकिन जैसे -तैसे करके मैंने हिम्मत जुटाई और पर्स से मोबाइल निकल कर निशांत के पापा का नंबर डायल करने ही वाली थी की उन्ही का फ़ोन  गया ,उन्होंने बस इतना ही कहा "निशांत अब इस दुनिया में नहीं रहा "इससे आगे वो कुछ कह न सके और शायद मई सुन नहीं पाती.
मई उलटे पाव वापस घर आ गई .घर पर मैंने रोते बिलखते साडी बात अपने परिवार वालो को बता दी .मै रोती रही ,सांत्वना और अस्वासन का दौर चलता रहा .इस बीच कई दिन गुजर गए .मेरे परिवार वालो को यही तसल्ली थी की जो हुआ वो मेरी शादी के बाद नहीं हुआ .परन्तु मेरी मन :स्तिथि कौन समझता ?मैंने तो निशांत को मन से वरन किया था ,उसे ही अपना पति मान चुकी थी .
************************************************************************आज एक बार फिर से मुझे डिअर पार्क जाने की इच्क्षा हुई और मै वहां चली आई .वही बैठी थी जहाँ कभी हम दोनों का शारीर बैठा करता था ,जहाँ कभी हमने कई खुशनुमा पल गुजरे थे .वो जगह जो साक्षी थे हमारे पल पल परवान चढ़ते मेरी मासूम मोहब्बत के ,यहाँ हम बाते करते थे ,कभी प्यार की तो कभी मनुहार की .बरबस मेरी आँखों से आंसू बहाने लगे ,मैंने इन अश्को को बहाने की आजादी दे दी न इन्हें पोछती  इन्हें रोकती.तभी वहां किन्नरों का दल आ गया और मुझे देखते ही मेरे पास आ गया .उस में से एक ने कहा "अरे ये तो वही है जिसकी शादी होने वाली थी "
दूसरी ने कहा "क्या हुआ ,तुम रो क्यों रही हो और वो लड़का कहाँ गया ,क्या आज वो तुम्हारे साथ नहीं है ?"
मैंने कहा "नहीं" 
फिर किन्नर ने पूछा"क्या शादी टूट गई ?"
मैंने धीरे से कहा  "हाँ "
किन्नर ने फिर पूछा "क्यों ,वो भाग गया?"
मैंने कहा" हाँ ,दूर बहुत दूर और बहुत जल्दी "
"तो ऐसे के लिए क्यों रोती हो ?"किसी किन्नर ने कहा 
"अब मै उसकी विधवा हूँ "मैंने तथ्स्ता से कहा ,मैंने उन्हें कुछ रुपए दिए और कहा "दिल से दुआं करना की अगले जन्म में मै ही उनकी प्रेमिका और पत्नी भी बनू "
                                                                                                                                प्रतिमा सक्सेना
"दो मानवीय आत्माओ के लिए इससे महान बात क्या हो सकती है की वे आपस में जुड़ा महसूस करे ,एक दुसरे की ताकत बने और यादो की ख़ामोशी में भी साथ बने रहे "
                                                            जार्ज इलिएट