Wednesday, July 4, 2012

tum sang prit lagai sajna

तुम संग प्रीत लगाई सजना                                                               
मौसी माँ ,मौसी माँ ये देखिये मुझे मेडिकल में दाखिला मिल गया है .ख़ुशी के मारे चैताली के आवाज़ की कम्पन साफ साफ सुनी जा सकती थी .मौसी माँ कहाँ है आप ?अरे ये क्या आप सो रही है?उठिए न देखिये ,मुझे मेडिकल में दाखिला मिल गया है लेकिन चैताली की आवाज़ से भी जब बिस्तर  पर लेती महिला के शारीर में कोई हलचल नहीं हुई ,ये देख कर चैताली ने उन्हें हाथ लगा कर उठाने का प्रयास किया परंयु मौसी माँ तो बेहोशी की अवस्था में थी .चैताली लगभग चीखती हुई आवाज़ लगाई "चैतन्य ,चैतन्य , मम्मी जल्दी आओ देखो मौसी माँ को क्या हो गया है" .चैतन्य  ने नब्ज देखा और बोला "जल्दी से एम्बुलैंस बुलाओ, हॉस्पिटल  लेकर जाना होगा "हॉस्पिटल पहुचते ही डॉक्टर ने इमरजेंसी में दाखिल किया  और बताया की माइनर हार्ट अटैक है ,समय पर हॉस्पिटल आने की वजह से वो अब खतरे से बहार है घबराने की कोई बात नहीं है .
हफ्ते भर के बाद कुछ जरुरी हिदायतों के साथ  मौसी माँ को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई ,परन्तु डॉक्टर ने साफ साफ बता दिया था की जरुरत से जयादा काम या परेशानी से ही हुआ है इसलिए इस बात की सक्त हिदायत थी की मौसी माँ को किसी भी तरह की परेशानी न हो 
                                                                                 मौसी माँ ,हम उन्हें इसलिए कहते है क्यूंकि उन्होंने हमें ऐसे समय में सहारा दिया था जब हमारे पिता का देहांत हो गया था  और सभी रिश्ते नाते पराये हो गए थे हम अर्श से फर्श पर आ गिरे थे .हमें कहीं से कोई सहारे का आसरा नजर नहीं आ रहा था तब मौसी माँ अचानक किसी भगवान की तरह हमारी जिंदगी में आई और हमारी डूबती नैया को पार लगा दिया 
मौसी माँ हमारे लिए माँ और बाप दोनों बन गई थी .वो अपना एक बच्चो का हॉस्टल चलाती थी और वही रहती भी थी और उन्होंने वही मेरे भाई चैतन्य मम्मी और मुझे अपने पास रख लिया.मेरी मम्मी को वो दीदी कहती थी इसलिए हम उन्हें मौसी माँ कहते थे पर उन्होंने कहा की मुझे माँ भी कहो तो इसतरह वो हमारी मौसी माँ बन गई
                 मौसी माँ आप जैसा महान इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा ,जो दुसरो के लिए अपना जीवन दो पर लगा दे आखिर आप क्यों इतनी महान है ?मैंने जैसे ही ये कहा मौसी माँ गुस्से से बोली 'ये दूसरा कौन है ?क्या जन्म के या खून के ही रिश्ते अपने होते है ,इंसानियत ,प्यार ,मोहब्बत के रिश्ते कोई मायने नहीं रखते ?ख़बरदार जो मुझे जो कभी मुझे से ऐसी बाते की तो अबकी बार हॉस्पिटल से वापिस ला भी न सकोगी.मौसी की इस धमकी ने मुझे अन्दर तक हिला दिया .पता नहीं मेरी शक्ल देख कर उन्हें क्या ख्याल आया तुरंत उन्होंने कहा की सबो को बुला लो मै सब से कुछ बात करना चाहती हूँ 
मम्मी और चैतन्य आ गए .मौसी ने कहा "शायद अब मै ज्यादा जी न सकु"इतना सुनते ही मम्मी ने कहा कैसी बाते करती हो बहन इतनी छोटी बात से तो तुम घबराने वाली नहीं लगती है "

"सच कहा दीदी आपने "मौसी ने कहा लेकिन कुछ बाते है ,हमारे रिश्तो की सच्चाई जानने का  वक्त आ गया  है ताकि आप मुझे कोई महान या खुद को ये बच्चे हिन् न समझे
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बात आज से बीस -बाईस साल पहले की है मै एक बहुत ही खुबसूरत  और सबसे महँगी नर्तकी थी .हम समाज के उस हिस्से से सम्बन्ध रखते थे जहाँ जिंदगी रात को अपने रंग में आती थी ,हम बड़े बड़े लोगो के शादी ब्याह में भी रात की महफ़िल सजाने जाते थे.ऐसी ही एक महफ़िल में मुझे तुम्हारे पिता देव बाबु मिले
.बैठे तो थे वो भी कीचड़ में लेकिन किसी कमल की तरह अपना महत्व बरक़रार रखे हुए थे.पता नहीं उनमे कैसी कशिश थी की उन्हें देखते ही 
 मेरे दिल को वो भा गए .व्यक्तिव ऐसा था की हजारो की भीड़ में दैवत्य की चमक से अलग लगते थे,सफ़ेद कुर्ता-धोती में तो उनका चमकता रूप ऐसा होता था की उन पर से नजर ही नहीं हटती थी .वाणी में प्रभाव ऐसा की बस मंत्रमुग्ध होकर सुनते ही जाओ .दिल को बस एक ही ख्याल आया की काश!ये मेरे होते.मै तो पहली ही नज़र में मर मिटी थी उनपर लेकिन उन्होंने मुझे देखा तक नहीं ,दिखने की कोशिश की तो हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और चलते बने और यही बात मुझे पागल कर गई .मै आहत हुई थी की मुग्ध हुई थी ये समझ में नहीं आ रहा था लेकिन ये तो जिद इस दिल को हो गई थी की अपने यौवन के चमक से इस पाषाण को एक बार  तो पिघला कर ही रहुंगी.किसी तरह पूरी जानकारी प्राप्त की तो पता चला की ये शहर के नामीगिरामी  उद्योगपति है .वो तो वैसे भी मुझ से मिलाने से रहे और वैसे भी प्यासा कुआ के पास जाता है कुआ थोड़े ही न चाल के आता है वैसे भी गरज मेरी थी तो रास्ता भी तो मुझे ही निकलना ही था .किसी तरह से देव बाबु के दोस्त के यहाँ के समारोह में निमंत्रण हासिल कर पहुच गई .वहां देव बाबु अपने  परिचित अंदाज़ में ही नज़र आये ,महफ़िल की शान बने ,लोगो के बीच आकर्षण  का केंद्र बने बैठे थे .मै वही पहुच  कर अपनी सारी अदाओ को का जाल बुनकर एक सलाम बड़े नजाकत से उन्हें पेश किया परन्तु अपनी सादगी से उन्होंने मुझे फिर से घायल कर दिया .महफ़िल समाप्त होते ही मैंने देव बाबु के दोस्त से बड़ी मिन्नत करके उनसे मिलवाने का एक मौका प्राप्त कर लिया .जैसे देव बाबु से सामना हुआ मैंने दिल की आरजू उनके सामने रख दिया .मैंने कहा "मुझे आपसे बे इम्तिहान प्यार हो गया है ,जब से आपको देखा है ,तब से बस आपसे मिलने की तम्मना रह गई है "
देव बाबू ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा "ये नाचीज़ आपके किसी काम का नहीं है "
मैंने कहा "ऐसा मत कहिये कम से कम एक बार तो मेरी मोहब्बत की गहराई को आजमा के तो देखिये "
देव बाबु फिर मुस्कुराते हुए बोले "आप मुझे समझ नहीं रही है ,मै एक शादी शुदा ,बाल बच्चे वाला इन्सान हूँ ,मै अपनी गृहस्थी में बहुत खुश हूँ और ऐसी बातो के विषय में विचार करने का समय नहीं है और फिर मै जहाँ रहता हूँ वहां आपके समाज से हमारे  समज में बहुत दुरी है .वहां मै आपसे बात तो क्या आपका जिक्र भी नहीं कर सकता हूँ और जिस बात की पेशकश कर रही है वो तो नामुमकिन है ,मुझे क्षमा कीजिये "कह कर देव बाबु कमरे से बहार चले गए .मै अपमानित नहीं बल्कि तिरस्कृत  महसूस कर रही थी ..मै दुखी नहीं अतृप्त थी मै असंतुस्ट थी ,छुब्द थी .इस तिरस्कार ने मेरी ही नहीं बल्कि मेरे अस्तित्व को हिला दिया था,मेरी सोच बदल गई थी . मै इतनी खुबसूरत थी जिसकी एक मुस्कुराहट के लिए लोग अपनी जागीर लुटाने को तैयार रहते थे, जिसकी की एक नज़र पाने को बेक़रार रहते थे वो खुद आज किसी की एक नज़र को व्याकुल थी ,ऐसा रूप किस काम का ?मै अकेलेपन की कोठारी में बंद होती जा रही थी 
एक दिन झुमकू जो की मेरा शागिर्द  था ,झूमता कूदता  हुआ मेरे पास आया और कहने लगा की देव बाबु ने संदेसा भिजवाया है की वो आप से मिलना चाहते है .मै ख़ुशी  से बाबड़ी हो गई थी खुद को और अपने आशियाने को दुल्हन की तरह सजा लेना चाहती थी लेकिन तभी झुमरू ने कहा की वो यहाँ नहीं आयेंगे आपको शहर से बहार बुलाया है वो भी सादे वेश भूषा  में .मै आदेशनुसार अपने गन्तव स्थान पर पहुच गई .वहा देव बाबु को अपने सामने पाकर मै तो सब भूल ही गई जो रस्ते भर सोचती आई थी की ये बोलूंगी , ये समझूंगी लेकिन मै तो अपन होशो-हवाश  ही गवा बैठी थी ,वहां पहुचने पर तो मै मंत्रमुग्ध ,वशीभूत सी बस उन्हें ही देखते रह गई ,देव बाबु की आवाज़ से मेरी तन्द्रा भंग हुई ,
वो कह रहे थे "आप कैसी है ?"इतनी  शालीनता और इज्जत  से तो आजतक किसी ने मुझे संबोधित नहीं किया था .मै तो इस इज्जत अफजाई से सरोवेर हुए जा रही थी किसी तरह दिल को काबू में कर जुबान से पूछा "आखिर आपको हमारी याद आ ही गई "
देव बाबु बोले "मैंने सुना है अज कल आप अपने काम के साथ ना-इंसाफी  कर रही है ,देखिये भगवन ने हम सब को इस दुनिया में एक मकसद से भेजा है ,जिसके जिम्मे जो काम है उसे पूर्ण ईमानदारी से करना हमारी जिमेदारी है "
मैंने कहा "इतनी बड़ी बड़ी बातो का मुझे ज्ञान नहीं पर इतना मालूम है जिस काम में दिल न लगे उसे नहीं करना चाहिए ,और मेरा दिल अब आपके सिवा किसी और काम में नहीं लगता न ही दिल इजाजत देता है ,हाँ यदि आप एक   मौका दे तो आपके खिदमत में जान  निकल कर रख दू
इसबात को सुनकर  अपने परचित अंदाज में उन्होंने कहा "क्या तुम अपनी दुनिया ,अपना जहान,वो मौहौल ,वो आराम मेरी खातिर त्याग सकती हो ?मेहनत करके इज्जत की जिंदगी गुजार सकती हो ?
मैंने कहा "मै सब कुछ कर सकती हूँ लेकिन क्या आप मुझे अपनाएंगे?
ये तो हम तुम्हे पहले भी बता चुके है की ये संभव नहीं है लेकिन हम तुम्हे समाज में अपने और दुसरो की नजरो में इज्जत देखना चाहते है ,अगर आ सको तो कल आ जाना 
मै बिना कहे ही  उनकी अनकही बातो  को  और मुझे में उलझा उनके  मन का हाल  समझ चुकी थी ,उनको भी मुझसे प्यार हो गया था  लेकिन जिसको वो दुनिया के सामने तो क्या मेरे सामने भी स्वीकार करने से हिचकिचा रहे थे .इसमें फैसला लेने जैसी तो कोई बात थी नहीं बस जरुरत  भर  का सामान बांध लिया और उस सुनहरे  पल का इंतजार करने लगी जिसमे मेरी जिंदगी एक नई करवट लेगी
देव बाबु ने मुझे शहर से दूर एक जगह पर जीने का मकसद दिया .उन्होंने मुझे यह स्कूल जो की बच्चो का होस्टल भी था इसे संभालने की जिमेदारी दी .हलाकि ये बहुत ही कठिन काम था मेरे लिए परन्तु मेरे प्यार को पाने का यही एक मात्र रास्ता था .उनके प्रेम को पाना था तो ये तो करना ही था यही मेरे प्रेम की परीक्षा थी ,अपने सजना के प्रीत को पाने को यही मेरी पहली और आखरी सीढ़ी था जिसे हर हाल में मुझे चढ़ाना था
पांच साल के अथक प्रयास के बाद मैंने अपने मकसद को पा  लिया था .मेरे स्कूल होस्टल को सरकारी मान्यता  प्राप्त हो गया था इसमें देव बाबु ने मेरा पूरा साथ दिया था
आखिर एक दिन देव बाबु को मैंने कहा की आपने जो मुझे कहा मैंने कर दिखाया ,अब आप मुझे अपना एक परिवार दे दीजिये"
ये सुनकर वो कुछ  पलो के लिए चुप रहे फिर कहा "जो कुछ मेरा है ,वो सब तुम्हारा भी तो  है ,क्या तुम मेरे बच्चो को अपना नहीं मानती?"
मै शादी तुम से नहीं आकर सकता ,ऐसा नहीं है की मै डरता हूँ लेकिन मै अपनी पत्नी ,प्रेमिका या बच्चो को किसी प्रकार का सामाजिक तिरस्कार या मानसिक चोट नहीं पहुचना चाहता हूँ"
मैंने तुम संग प्रीत लगाई   है जिसकी मैंने पूरी इज्जत रखी है और प्रेम की इज्जत बरक़रार रखना  ही प्रीत की रीत है ,प्यार का मकसद सिर्फ शादी या शारीरिक जरुरत नहीं होना चाहिए ,अगर तुम से शादी कर भी लू तो इस समाज में तुम्हारा स्थान दूसरी औरत का होगा जो कही न कही तुम्हे भी लज्जित करता रहेगा इसलिए इस प्यार को प्यार ही रहने दो रिश्ते का कोई नाम न दो तो बेहतर रहेगा आगे तुम्हारी मर्जी"
इसके बाद मैंने कभी भी देव बाबु से शादी का जिक्र नहीं किया हम युही एक रूहानी रिश्ते में कैद परिंदे की तरह उन्मुक्त गगन में विचरते रहे
फिर जब मुझे देव बाबू के देहांत का खबर मिला तो मुझे उनके कहे कथन याद आये "मेरा परिवार भी तो तुम्हारा ही है "इसलिए मैंने कोई महानता का कोई काम नहीं किया है बल्कि अपनी जिमेदारी का पालन किया है ,तुम सब मेरे हो , अपने हो .हम सब चुप थे .सबो के मन में अलग अलग सवाल सर उठा रहा था कई भाव आ और जा रहे थे मुझे सबसे ज्यादा मम्मी का के बारे में लग रहा था की पता नहीं वो क्या सोच रही होंगी उन पर क्या असर होगा इन बातो का
परन्तु मम्मी ने मौसी माँ को गले से लगा लिया और कहा की" मुझे ख़ुशी है की मेरा और तुम्हारा वाकई में कोई रिश्ता है "
मै मन ही मन बस यही सोच रही थी" इस प्रेम की अनकही कहानी में 
                                                 कितनी प्रेम की पवित्रता है
                                                 जैसे सूर्य की पहली किरन को समर्पित अर्ग होता है 
                                                जैसे मीरा के प्रेम में साधना होता है 
                                                जैसे चाँद के शीतलता में सितारों सुकून होता है 
                                                 जैसे ओस की नमी से पत्ता पनपता है "   
                                                                                       














Saturday, May 12, 2012

MERI JIMEDARI

मेरी माँ बहुत परेशान हो रही  थी .बार बार मुझे मेरे घर जाने की जिद कर रही थी .उनका कहना था की वो तो अपनी जिंदगी जी चुकी है और बची जिंदगी भी जैसे तैसे तो गुजर ही जाएगी .मै उनकी वजह से अपना आने वाला समय क्यों ख़राब  कर रही हूँ.वह किसी वृद्ध आश्रम में जाने की बात कर रही थी और मै किसी भी कीमत पर इस बात के लिए राजी नहीं थी
मै एक शादीशुदा ,दो बच्चो की माँ हूँ.मेरे पति एक बहुत बड़ी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर है ,मेरे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ते  है .मेरे घर में हमारे साथ सास -ससुर भी रहते है.मेरी सबो के प्रति जो जिमेद्दारी है,उसमे मैंने कभी कोई कमी नहीं होने दी ,लेकिन मैंने हमेशा उस घर में एक खालीपन को जिया है ,ऐसा लगता है ,जैसे किसी कैनवस  पर हर तरह रंग भरा हुआ है ,लेकिन कोई एक कोना जाने -अनजाने में सदा रंगहीन रह जाता   है जो समय के साथ कैनवास    रूपी जिंदगी पर हावी होता जा रहा है .वह सादापन कुछ और नहीं मेरे जीवन में प्यार की कमी  का सूनापन था .ऐसा लगता था जैसे जिंदगी एक यंत्र की तरह चल रही है जहाँ भावनाओ की कोई जगह ही नहीं थी,जिंदगी एक रूटीन से ज्यादा कुछ नहीं रह  गया  था 
हम दो भाई -बहन थे,हमारे पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था ,जब हम बहुत छोटे थे.तब मेरी माँ ने बहुत हिम्मत से काम लेते हुए हमें और खुद को संभाला और जिंदगी की गाड़ी को आगे बढाया.
मुझे एन .टी .टी.का और भाई को ऍम .बी ए की उतीर्ण पढाई करवाई  .मै एक स्कूल में शिक्षिका बन गई और भाई को एक बहार की कंपनी से अच्छी ऑफर मिल गई और भाई   बाहर सैटल  हो गया 
मम्मी में मेरे लिए भी रिश्ते देखने लगी इसी बीच उन्हें आशुतोष पसंद आ गए .फिर हमारी  सगाई ,शादी  और शादी में हुए ढेरो खर्च और और फिर अंत में मेरी मेरे घर से विदाई और मम्मी रह गई अकेली और तनहा .शुरू शुरू में तो वो कभी किसी मामा तो कभी मौसी के पास चली जाती थी या उन में से ही कोई आ जाया करता था .मेरा आना जाना अपने ही घर में मेहमानों   की तरह   हो गया था .बस पर्व त्यौहार पर हफ्ते डेढ़ में सिमट कर रह गया था ,धीरे धीरे ये सिलसिला भी जिमेदारियो की भेट चढ़ कर क्षीण होता गया .हलाकि मेरा भाई मम्मी को बार बार अपने पास बुलाता पर मम्मी को वहां जाना मंजूर नहीं था .मम्मी को कोई तकलीफ न हो इसलिए वो एक मोटी रकम हर महीने मम्मी को भेजता था .सब कुछ ठीक चल रह था की अचानक मम्मी बहुत  बीमार हो गई ,अब उन्हें  हर  वक्त किसी न किसी के साथ की सकत जरुरत थी .हमने नौकर या मेड रखने  की बात की तो मम्मी डर गई ,साफ़ साफ़ मना कर दिया क्यूंकि आजकल आये दिन नौकरों और मेड के द्वारा  कत्लो आम और लुट पाट की घटना से तो हम सब भली  भाती वाकिफ थे इसलिए मम्मी की बहुत मन मनुआल के बाद मै अपने ही घर में लेके आ गई 
उनको  डॉक्टर से दिखाया ,समय से देखभाल ,दवाई ,खाना ने अपना असर  दिखाया और मम्मी जल्दी ही ठीक हो गई .थोडा समय सही से गुजरा लेकिन फिर माजी ,आशुतोष के व्यवहार में मुझे बदलाव महसूस होने लगा .जैसे आशुतोष पहले ऑफिस से आते ही मम्मी से मिलने आते ,उनका हाल-चाल पूछते या माजी जैसे पहले सुबह की सैर मम्मी के साथ करती  थी अब वो अकेले ही जाने लगी,हाँ लेकिन बच्चे बिलकुल पहले ही जैसे थे,हर वक्त नानी नानी करते ,चुटकुले सुनाते और हँसते हँसाते रहते .मेरी मम्मी को भी इस बदलाव का अहसास होने लगा था वो अब अपने घर जाने की जिद करने लगी थी .उनकी अनुभवी आँखों ने सब कुछ समझ लिया था ,इसलिए वो लगभग जबरदस्ती ही अपने घर चली गई 
मुझे हर वक्त चाहे न चाहे मम्मी की चिंता होती  रहती थी .मैंने आखिर एक दिन आशुतोष से बात की कि क्यों न हम मम्मी को अपने पास ही रख ले .ये सुनते ही तो आशुतोष तो बिलकुल बिदक गए और  बोलने लगे गरिमा तुम्हे हो क्या गया है ?हम मम्मीजी को यहाँ कैसे रख सकते है ?हमारे पास  कोई एक्स्ट्रा कमरा भी तो नहीं है .बच्चो  के कमरे में रहने पर बच्चो की पढाई में बाधा  होगी और फिर आते जाते मेहमान भी बोलने से बाज नहीं आते है , कहते है "अरे आशुतोष क्या तुम्हारी मम्मीजी अब यही रहती है ?"ऐसा कोई निर्णय हम कैसे ले सकते है ?"
मुझे ये सुनकर इतना धक्का लगा की मेरे मुह से एक शब्द नहीं फूटा.आशुतोष कितने स्वार्थी है ,इन्हें सबो की फ़िक्र है सिवाए मेरी भावनाओ के और मेरी माँ दर्द के अहसास के.मै कुछ बोल नहीं सकी ,बस मेरी आँखों से बनके मेरा दर्द बहे जा रहा था .आशुतोष तो करवट लेकर सो गए और मै पता नहीं रोते रोते कब सोई .सुबह देर से आँखे खुली ,इस वजह से सारा रूटीन गड़बड़ हो गया .ऐसे ही सुबह इतना कम समय होता है की साँस लेने की भी फुर्सत नहीं होती है 
सुबह  10 .30  के करीब फ़ोन की घंटी बजी 
फोन  आशुतोष ने ही उठाया ,पता चला की  मम्मी छत की सीढियों से गिर गई है .उनके पैर और हाँथ में फ्रैक्चर है ,प्लास्टर चढ़ेगा 
आशुतोष मुझे हॉस्पिटल छोड़ कर ऑफिस चले गए.मुझसे मम्मी की हालत देखी नहीं जा रही थी .मै अपने   आप को ही कोसे जा रही थी की मैंने मम्मी  को घर जाने ही क्यों दिया ? अगर वो मेरे घर होती तो आज ये हालत नहीं होती 
करीब दो महीने के इलाज के  बाद मम्मी ठीक हो गई .मैंने आशुतोष के सामने साफ साफ कह दिया की मम्मी अब हमारे ही साथ रहेंगी. वह तो बिलकुल बिरफ पड़े कहने लगे ये क्या बात हुई ?तुम बेटी हो ,ये फर्ज तुम्हारे भाई का है की वो अपनी माँ का ख्याल रखे ,लेकिन खुद तो वो विदेश में जा बैठा  है और मुस्किल हमारे लिए छोड़ गया है  .ये सुनते ही तो मेरे तन बदन में आग लग गई .पर मै रोते हुए मम्मी के पास आ गई .मम्मी की तजुर्बेदार आँखों ने बिना कुछ कहे ही सब कुछ भाप लिया .इस बार मैंने मन ही मन ठान लिया था की कुछ भी हो जाये मै मम्मी को अकेले नहीं छोडूंगी .मन ही मन यही सोच रही थी की मम्मी ने कभी बेटा बेटी में फर्क नहीं किया तो आज वो सिर्फ बेटे की माँ कैसे रह गई ?अगर वो चाहती तो पापा के देहांत के बाद शादी कर सकती थी,आखिर वो भी खुबसूरत और जवान थी  ,हमें होस्टल में डालकर अपना फर्ज पूरा कर सकती थी .उनके लिए वो वक्त कितना मुस्किल रहा होगा ,जब धनोपार्जन के साथ साथ हमें भी पाल पोस रही थी .लेकिन जब मम्मी ने कभी अपने लिए नहीं सोचा तो आज मै कैसे सिर्फ बहु ,बीबी या माँ बनके रह जाऊ? मैंने एक निश्चित निर्णय के साथ अपना कदम उठाया .मै घर गई ,जरुरत भर का सामान लिया और चल पड़ी .आशुतोष मुझे देखते  ही खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया "अरे तुम कैसी माँ हो,जो अपने ही बछो को छोड़ कर जा रही हो "मैंने बोला "वहां स्कूल की बस नहीं आ सकेगी इस लिए उन्हें साथ नहीं ले जा सकती ,और फिर न ही तो ये दूध पीते बच्चे है और न ही ये घर कोई  जंगल  है. फिर आशुतोस कहने लगे "क्या आज तुम्हारे लिए तुम्हारी माँ इतनी महत्वपूर्ण हो गई की उनके लिए तुम अपना पति,घर सब कुछ छोड़ने को तैयार हो गई ?"
फिर तो जैसे मेरे अन्दर का गुब्बार ही फुट पड़ा ,कौन सा घर कैसा पति?जिस घर में रहने के लिए हर वक्त मुझे दूसरो की इजाजत की जरुरत हो ?और कैसा पति जिसको हर किसी की चिंता है सिवाए मेरे? तुमने कभी मेरी इच्छाओ  को जाना ?कभी मेरी जरूरतों को समझा ?कभी मेरी भावनाओ की इज्जत की ,अरे तुम्हे तो ये भी नहीं पता की मै कब दुखी हूँ और किस बात से खुश होती हूँ ?क्या कभी तुमने अपने फैसले में मुझे शामिल किया ?कभी तुमने मेरी पसंद नापसंद को ताजबो दिया ?नहीं तुम्हे  तो समय से काम करने वाली एक मशीन समझा मुझे .आशुतोष कहने लगे उनका बेटा तो है न ,वहां क्यों नहीं चली जाती क्या सारी जिमेदारी तुम्हारी ही है ? मैंने कहा बहार के देशो में टाइम बोंड होता है इतना तो आपको पता है और उसको आते आते समय लगेगा और मम्मी वहां जाना नहीं चाहती इसलिए मै ही मम्मी के पास रहने जा रही हूँ .
आशुतोष ने कहा"कम से कम इन बच्चो का तो सोचो ,इनका क्या होगा?"
मैंने कहा "क्यों मैंने जिसे पैदा किया वो मेरी जिमेदारी है लेकिन जिसने मुझे पैदा किया उसके प्रति मेरी कोई जिमेदारी नहीं है ?"इतना कहने के बाद मै हॉस्पिटल आ गई .मम्मी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कराया और घर आ गई .मेरा  सामान  देखते   ही वो समझ गई इसलिए वो परेशां थी और मुझे समझा रही थी मै अपने घर चली जाऊ .वो ये नहीं चाहती थीउनकी वजह से मेरी जिंदगी में कोई परेशानी आये  लेकिन ये तो दुनिया की कोई माँ नहीं चाहेगी .परन्तु मेरी क्या जिमेदारी थी और मुझे क्या करना था ,ये सोचना और उस पर अमल करना मेरा काम था 
मुझे नहीं पता की लोग क्या कहेंगे ,परन्तु मै संतुष्ट हूँ और मेरी नज़रो में संतुष्ट इन्सान  ही  सम्पूर्ण और खुश होता है .






Sunday, April 15, 2012

TU HI MERA SARA JAHAN HAI

डिअर पार्क में आये मुझे करीब करीब आघा घंटा हो चुका था लेकिन निशांत का अभी तक नहीं आया था .मै बार बार अपनी कलाई पर बंधी घडी को देखती और खुद को ही पांच मिनट का समय और देती की शायद अब मेरे इंतज़ार करतीबेबस ,दर्शनअभिलाषी अंखियो को निशांत की एक झलक दिख जाये और मेरी बैचैन निगाहों को सुकून मिल जाये.
ऐसा करते करते मुझे एक घंटा से भी ज्यादा का समय हो गया मगर वो न आया ,खैर ये   कोई पहली बार तो हुआ नहीं था ,हर बार की यही कहानी थी क्यूंकि निशांत को ये पता था की मै उससे किस हद तक प्यार करती हूँ ,दुनिया इधर की उधर हो जाये पर मै निशांत को बिना देखे ,बिना दो बोल बोले मै तो मर भी नहीं सकती फिर चली कैसे जाती और शयद वो इसलिए वो मुझे इस कदर सताता है या मेरे प्यार की परवाह नहीं करता है और वैसे भी अगर किसी को ये पता चल जाये की कोई उससे किस कदर मोह्हबत करता है तो शायद सामने वाला निश्चिंत हो जाता है और स्थिर भी.
तभी निशांत मुझे आता दिखा ,मेरे चेहरे पर मुस्कराहट के उभर आये ,आखिर प्यासे को क्या चाहिए ,दो बूंद पानी ,परन्तु ख़ुशी का एहसास गायब भी हो गए क्यूंकि तभी मेरे दिल ने ये कहाँ की देखो तो भला कितना इंतजार करके आया है इसलिए मैंने भी अपने चेहरे पर नाराजगी के भाव दर्शा  दिए
आई ऍम सॉरी ,सोनिया ,मै फिर से लेट हो गया लेकिन इस में मेरी कोई गलती नहीं हैमै तो समय से निकल रहा था की तभी बॉस ने एक और काम दे दिया और उसी को निबटाते निबटाते मै लेट हो गया.परन्तु मैंने कुछ नहीं कहा   .निशांत  समझ गया था की मै गुस्से में हूँ इसलिए वो बोले ही जा रहा था .
अरे यार अब तो गुस्सा छोड़ो ,देखो वैसे भी हमारे पास मिलाने -बैटने के लिए कितना काम वक्त होता है और जो मिला है तुम उसे भी नाराजगी के भेंट चढ़ा कर बर्बाद कर  रही हो .यह सुनते ही मेरा बनावटी गुस्सा भी भी फुर्र हो गया ठीक वैसे ही जैसे koiudरोते हुए बच्चे को कहता है ,ये देखो ,ये देखो चिड़िया आकाश में उड़ रही है और मासूम बच्चा अपना रोना भूलकर चिड़िया देखने लग जाता है .मेरा गुस्सा शांत इसलिए भी हो गया क्यूँकि ये तो सच था ,हमारे पास एक -दुसरे के लिए समय निकाल पाना वाकई में बहुत मुश्किल होता था क्यूँकि हम दोनों ही नौकरी करते थे.
मैंने फिर भी थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा "क्यों मेरे लिए ही टाइम नहीं होता है न औरो के लिए समय ही समय था "
"नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है तुम भी न कभी कभी सब कुछ समझते हुए भी मुझे चोट पहुंचा देती हो "निशांत ने ये लब्ज जितने शांत लहजे से कहा था मुझे मेरी गलती का अहसास उतना ही तीव्र हुआ था भला मैंने निशांत के दिल को दुखाने वाली बात कैसे कह दी मै तो उसके चहरे की एक मुस्कान के लिए अपनी जान तक लुटा दु.
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दरअसल मेरी और निशांत की लव स्टोरी की शुरुआत निशांत और शीतल के ब्रेक अप से हुआ था .शीतल और मै एक ही ऑफिस में एक साथ काम करते थे शीतल बहुत ही सुन्दर पर घमंडी थी .किसी का दिल शीतल पर फ़िदा  हो   जाये ये कोई ताजुब की बात नहीं थी और शीतल और शीतल किसी का दिल बड़ी बेदर्दी से तोड़ दे तो ये भी कोई ताजुब की बात नहीं थी .शीतल की खूबसूरती के दीवाने एक नहीं कई थे उन में से ही एक था निशांत .
निशांत रोज ही किसी न किसी बहाने से शीतल से मिलने आ जाता था .शीतल भी उसके आने पर उसे इज्जत देती ,अच्छे वयवहार से पेश आती .दरअसल निशांत किसी कंपनी का एम्पलोयी था और हमारी कंपनी वेबसईट बनता थी ,इसी सिलसिले में उन दोनों की पहली मुलाकात हुई जो प्यार में बदल गई .शुरुआत में तो शीतल उससे खूब प्यार भरी बाते करती थी लेकिन कुछ ही दिनों के बाद शीतल के ऊपर से प्यार का भुत उतर गया जैसे गधे के सिरसे सिंग गायब हो जाता है इसकी वजह ये थी की शीतल को ये पता चल गया था की निशांत की तनख्वाह मात्र दस हजार प्रति माह है .शीतल ने तो अपने कदम आगे बढा दिया था लेकिन निशांत वहीँ खड़ा रह गया था और निशांत की यही सच्चाई मुझे भा गई और मैंने उसकी तरफ दोस्ती का हाँथ बढा दिया और जिसे निशांत ने सहर्ष स्वीकार कर लिया
                                                                                                     
   हमारी दोस्ती उसकी दोस्ती और मेरा प्यार था .मै उसे हरसंभव समझाती थी की शीतल तुम्हारे लायक नहीं है तुम उसका ख्याल दिल से निकाल दो .परन्तु वो कहते है न प्यार तो दीवाना होता है और दीवाने कब किसी की राय से सहमत होते है,और ऐसा ही हाल तो मेरा था निशांत के लिए.निशांत अब  शीतल का प्यार पाने के लिएउसे मानाने के लिए महंगे से महंगे तोहफे उपहार में देत था ,बढ़िया से बढ़िया रेस्टोरेंट में लंच करता ,थियेटर में सिनेमा दिखता था और तो और इन सब के लिए तो कभी कभी वो मुझ से ही पैसे उधार कह कर लेता था जिसे उसने कभी वापस करने की जेहमत नहीं उठाई ,हालाँकि मै भी उस से कभी  वापस लेने की उम्मीद से नहीं देती थी क्यूंकि ये मेरी मोहबत की दीवानगी थी निशांत के प्यार में और दीवानों की तो एक ही लगन होती है अपने प्यार को खुश करने की चाहत ,उनका सानिध्य पाने की ख्वाइश और अपने प्यार की ख़ुशी में ही खुश होने की आदत.यही हाल था निशांत का शीतल के लिए और यही हाल मेरा था निशांत के लिए .हम दोनों एक ही भावनाओ की नदी के उफान में किस्मत की नैया के  सहारे चल रहे थे
,इस उम्मीद के साथ की शायद किसी दिन तो निशांत और मेरी चाहतो की धारा किसी समुन्दर की गहराई में गिर कर मिल जाएगी और हम एक हो जायेंगे
वो दिन तो आना ही था इसका मुझे यकीं था क्यूंकि शीतल ने किसी बहुत अमीर ,पैसे वाले का हाँथ थम लिया और आगे निकल गई ,निशांत वाही अकेला खड़ा रह गया
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उस दिन भी डिअर पार्क का ही वो स्थान था जहाँ निशांत फुट फुट कर रो रहा था और मै उसे दिलासा देने की हर संभव प्रयास कर रही थी तभी कुछ किन्नर वहां आ गए और अपने ही अंदाज में कहने लगे "वाह वाह क्या सुन्दर जोड़ी है भगवान तुम्हारी जोड़ी बनाये रखे ,क्या सुन्दर लड़का है क्या सुन्दर लड़की है ,हम तुम्हे आशीर्वाद देते है की तुम दोनों की जोड़ी हमेशा सलामत रहे ,तुम लोग हमेशा खुश रहो, चलो बाबूजी अब रुपए निकालो "
निशांत ने पता नहीं क्या सोच कर उन्हें सौ रुपए का नोट दे दिया और कहा "दुआ करो की जिसकी जोड़ी बनी है सलामत रहे "
मै समझ गई थी की ये किस जोड़ी के लिए दुआं मांगने की गुजारिश की जा रही है आखिर दिल तो बच्चा है जी *********************************************************************************************************************************************************************************************************************************
फिर हम अक्सर पार्क में मिलने लगे और यु ही मिलते मिलते हम दोस्ती से प्यार की सीढ़ी चढ़ने लगे .वो कहते है की किन्नरों की दुआओं में बहुत असर होता है इसलिए जब भी वो मेरे पास आते मै उन्हें हमेशा पैसे देती और उन से अपने प्यार के लिए खूब दुआएं बटोर लेती .
एक दिन एक किन्नर ने मुझ से पूछा "तुम उसकी क्या लगाती हो "
मैंने कहा "अभी तो प्रेमिका हूँ ,पत्नी बनना चाहती हूँ"
उस किन्नर ने मुझे बहुत आशीर्वाद दिया और कहा की शादी में जरुर बुलाना .
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 जिसका मुझे इतनी बेसब्री से इंतज़ार था आखिर वो दिन भी आ ही गया ,निशांत ने मुझ से शादी करने की इच्क्षा जाहिर की जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया .निशांत अपने माता -पिता की सहमति और आशीर्वाद लेने के लिए अपने गावं जाना चाहता था .मै बहुत खुश थी आखिर भगवान ने मेरी सुन ली थी मुझे मेरी मंजिल मिल गई थी ,वो बहुत कम खुशनसीब होते है जिनको मनचाहा जीवन साथी मिल जाता है .मै आज उन खुशनसीबो में से एक होने जा रही थी .निशांत जा रहा था मेरी आँखे नाम थी ,भींगी पलकों के साथ मैंने उसे विदा किया इस उम्मीद के साथ  की अगली बार मै भी उसके साथ जाउंगी .
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निशांत अपने घर गया वहां उसने परिवार  के सामने अपने दिल की बात रखी जिसे उसके परिवार ने सहर्ष स्वीकार कर लिया .निशांत ने अपने मम्मी -पापा से मेरी भी बात करवाई .हम सब बहुत खुश थे
आज मै फिर डिअर पार्क गई वहां मैंने किन्नेरो में रूपए बांटे और अपनी ख़ुशी भी क्यूंकि अब मै प्रेमिका से पत्नी बनने जा रही हूँ.
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आज निशांत वापस दिल्ली आ रहा था .शाम तक उसकी ट्रेन आएगी इसलिए आज खुद को सजाना सवारना चाहती थी अपने सजना के लिए सो मै एक ब्यूटी पार्लर चली गई .वहां T.V चल रहा था कोई लाइव न्यूज़ आ रहा था ,वहां उपस्थित सभी लोग टकटकी लगाय बड़े परेशान मुद्रा में  टेलीविजन की ओर देख रहे थे इसलिए अनायास मेरी भी नजर उधर आकर्षित हुए बीना रह नहीं पाई ,न्यूज़ में बता रहे थे की कोई  ट्रेन बहुत ही भयानक तरह से दुर्घटनाग्रस्त हुआ है ,तीन बोगियां बुरी तरह से जल कर खाक हो गई है ,सैकड़ो लोग घायल हुए है कई लोगो के मारे जाने की आशंका जताई जा रही थी ,चारो तरफ अफरा -तफरी का वातावरण था ,बहुत ही ह्रदय विदारक दृश्य था .हे !भगवन  ये तो वाही ट्रेन था जिससे निशांत वापिस आ रहा था ,मेरे सर के उपरी सतह पर जैसे कुछ करंट सा महसूस हुआ और मई बेहोश हो गई .थोड़ी देर बाद जब होश आया तो खुद को कई अनजान चेहरों  के बीच खुद  सोफे पे पड़ा पाया .थोड़ी देर में अपनी मनोदशा पर काबू पते हुए अपने आप को इस लायक बनाया की कम से कम मोबाईल पर संपर्क स्थापित करू .दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था ,कोई अनहोनी की आशंका ने  शारीर को इतना दुर्बल बना दिया था की खुद अपने पाँव पर खड़ा होना भी मुस्किल लग रहा था ,लेकिन जैसे -तैसे करके मैंने हिम्मत जुटाई और पर्स से मोबाइल निकल कर निशांत के पापा का नंबर डायल करने ही वाली थी की उन्ही का फ़ोन  गया ,उन्होंने बस इतना ही कहा "निशांत अब इस दुनिया में नहीं रहा "इससे आगे वो कुछ कह न सके और शायद मई सुन नहीं पाती.
मई उलटे पाव वापस घर आ गई .घर पर मैंने रोते बिलखते साडी बात अपने परिवार वालो को बता दी .मै रोती रही ,सांत्वना और अस्वासन का दौर चलता रहा .इस बीच कई दिन गुजर गए .मेरे परिवार वालो को यही तसल्ली थी की जो हुआ वो मेरी शादी के बाद नहीं हुआ .परन्तु मेरी मन :स्तिथि कौन समझता ?मैंने तो निशांत को मन से वरन किया था ,उसे ही अपना पति मान चुकी थी .
************************************************************************आज एक बार फिर से मुझे डिअर पार्क जाने की इच्क्षा हुई और मै वहां चली आई .वही बैठी थी जहाँ कभी हम दोनों का शारीर बैठा करता था ,जहाँ कभी हमने कई खुशनुमा पल गुजरे थे .वो जगह जो साक्षी थे हमारे पल पल परवान चढ़ते मेरी मासूम मोहब्बत के ,यहाँ हम बाते करते थे ,कभी प्यार की तो कभी मनुहार की .बरबस मेरी आँखों से आंसू बहाने लगे ,मैंने इन अश्को को बहाने की आजादी दे दी न इन्हें पोछती  इन्हें रोकती.तभी वहां किन्नरों का दल आ गया और मुझे देखते ही मेरे पास आ गया .उस में से एक ने कहा "अरे ये तो वही है जिसकी शादी होने वाली थी "
दूसरी ने कहा "क्या हुआ ,तुम रो क्यों रही हो और वो लड़का कहाँ गया ,क्या आज वो तुम्हारे साथ नहीं है ?"
मैंने कहा "नहीं" 
फिर किन्नर ने पूछा"क्या शादी टूट गई ?"
मैंने धीरे से कहा  "हाँ "
किन्नर ने फिर पूछा "क्यों ,वो भाग गया?"
मैंने कहा" हाँ ,दूर बहुत दूर और बहुत जल्दी "
"तो ऐसे के लिए क्यों रोती हो ?"किसी किन्नर ने कहा 
"अब मै उसकी विधवा हूँ "मैंने तथ्स्ता से कहा ,मैंने उन्हें कुछ रुपए दिए और कहा "दिल से दुआं करना की अगले जन्म में मै ही उनकी प्रेमिका और पत्नी भी बनू "
                                                                                                                                प्रतिमा सक्सेना
"दो मानवीय आत्माओ के लिए इससे महान बात क्या हो सकती है की वे आपस में जुड़ा महसूस करे ,एक दुसरे की ताकत बने और यादो की ख़ामोशी में भी साथ बने रहे "
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