Wednesday, July 4, 2012

tum sang prit lagai sajna

तुम संग प्रीत लगाई सजना                                                               
मौसी माँ ,मौसी माँ ये देखिये मुझे मेडिकल में दाखिला मिल गया है .ख़ुशी के मारे चैताली के आवाज़ की कम्पन साफ साफ सुनी जा सकती थी .मौसी माँ कहाँ है आप ?अरे ये क्या आप सो रही है?उठिए न देखिये ,मुझे मेडिकल में दाखिला मिल गया है लेकिन चैताली की आवाज़ से भी जब बिस्तर  पर लेती महिला के शारीर में कोई हलचल नहीं हुई ,ये देख कर चैताली ने उन्हें हाथ लगा कर उठाने का प्रयास किया परंयु मौसी माँ तो बेहोशी की अवस्था में थी .चैताली लगभग चीखती हुई आवाज़ लगाई "चैतन्य ,चैतन्य , मम्मी जल्दी आओ देखो मौसी माँ को क्या हो गया है" .चैतन्य  ने नब्ज देखा और बोला "जल्दी से एम्बुलैंस बुलाओ, हॉस्पिटल  लेकर जाना होगा "हॉस्पिटल पहुचते ही डॉक्टर ने इमरजेंसी में दाखिल किया  और बताया की माइनर हार्ट अटैक है ,समय पर हॉस्पिटल आने की वजह से वो अब खतरे से बहार है घबराने की कोई बात नहीं है .
हफ्ते भर के बाद कुछ जरुरी हिदायतों के साथ  मौसी माँ को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई ,परन्तु डॉक्टर ने साफ साफ बता दिया था की जरुरत से जयादा काम या परेशानी से ही हुआ है इसलिए इस बात की सक्त हिदायत थी की मौसी माँ को किसी भी तरह की परेशानी न हो 
                                                                                 मौसी माँ ,हम उन्हें इसलिए कहते है क्यूंकि उन्होंने हमें ऐसे समय में सहारा दिया था जब हमारे पिता का देहांत हो गया था  और सभी रिश्ते नाते पराये हो गए थे हम अर्श से फर्श पर आ गिरे थे .हमें कहीं से कोई सहारे का आसरा नजर नहीं आ रहा था तब मौसी माँ अचानक किसी भगवान की तरह हमारी जिंदगी में आई और हमारी डूबती नैया को पार लगा दिया 
मौसी माँ हमारे लिए माँ और बाप दोनों बन गई थी .वो अपना एक बच्चो का हॉस्टल चलाती थी और वही रहती भी थी और उन्होंने वही मेरे भाई चैतन्य मम्मी और मुझे अपने पास रख लिया.मेरी मम्मी को वो दीदी कहती थी इसलिए हम उन्हें मौसी माँ कहते थे पर उन्होंने कहा की मुझे माँ भी कहो तो इसतरह वो हमारी मौसी माँ बन गई
                 मौसी माँ आप जैसा महान इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा ,जो दुसरो के लिए अपना जीवन दो पर लगा दे आखिर आप क्यों इतनी महान है ?मैंने जैसे ही ये कहा मौसी माँ गुस्से से बोली 'ये दूसरा कौन है ?क्या जन्म के या खून के ही रिश्ते अपने होते है ,इंसानियत ,प्यार ,मोहब्बत के रिश्ते कोई मायने नहीं रखते ?ख़बरदार जो मुझे जो कभी मुझे से ऐसी बाते की तो अबकी बार हॉस्पिटल से वापिस ला भी न सकोगी.मौसी की इस धमकी ने मुझे अन्दर तक हिला दिया .पता नहीं मेरी शक्ल देख कर उन्हें क्या ख्याल आया तुरंत उन्होंने कहा की सबो को बुला लो मै सब से कुछ बात करना चाहती हूँ 
मम्मी और चैतन्य आ गए .मौसी ने कहा "शायद अब मै ज्यादा जी न सकु"इतना सुनते ही मम्मी ने कहा कैसी बाते करती हो बहन इतनी छोटी बात से तो तुम घबराने वाली नहीं लगती है "

"सच कहा दीदी आपने "मौसी ने कहा लेकिन कुछ बाते है ,हमारे रिश्तो की सच्चाई जानने का  वक्त आ गया  है ताकि आप मुझे कोई महान या खुद को ये बच्चे हिन् न समझे
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बात आज से बीस -बाईस साल पहले की है मै एक बहुत ही खुबसूरत  और सबसे महँगी नर्तकी थी .हम समाज के उस हिस्से से सम्बन्ध रखते थे जहाँ जिंदगी रात को अपने रंग में आती थी ,हम बड़े बड़े लोगो के शादी ब्याह में भी रात की महफ़िल सजाने जाते थे.ऐसी ही एक महफ़िल में मुझे तुम्हारे पिता देव बाबु मिले
.बैठे तो थे वो भी कीचड़ में लेकिन किसी कमल की तरह अपना महत्व बरक़रार रखे हुए थे.पता नहीं उनमे कैसी कशिश थी की उन्हें देखते ही 
 मेरे दिल को वो भा गए .व्यक्तिव ऐसा था की हजारो की भीड़ में दैवत्य की चमक से अलग लगते थे,सफ़ेद कुर्ता-धोती में तो उनका चमकता रूप ऐसा होता था की उन पर से नजर ही नहीं हटती थी .वाणी में प्रभाव ऐसा की बस मंत्रमुग्ध होकर सुनते ही जाओ .दिल को बस एक ही ख्याल आया की काश!ये मेरे होते.मै तो पहली ही नज़र में मर मिटी थी उनपर लेकिन उन्होंने मुझे देखा तक नहीं ,दिखने की कोशिश की तो हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और चलते बने और यही बात मुझे पागल कर गई .मै आहत हुई थी की मुग्ध हुई थी ये समझ में नहीं आ रहा था लेकिन ये तो जिद इस दिल को हो गई थी की अपने यौवन के चमक से इस पाषाण को एक बार  तो पिघला कर ही रहुंगी.किसी तरह पूरी जानकारी प्राप्त की तो पता चला की ये शहर के नामीगिरामी  उद्योगपति है .वो तो वैसे भी मुझ से मिलाने से रहे और वैसे भी प्यासा कुआ के पास जाता है कुआ थोड़े ही न चाल के आता है वैसे भी गरज मेरी थी तो रास्ता भी तो मुझे ही निकलना ही था .किसी तरह से देव बाबु के दोस्त के यहाँ के समारोह में निमंत्रण हासिल कर पहुच गई .वहां देव बाबु अपने  परिचित अंदाज़ में ही नज़र आये ,महफ़िल की शान बने ,लोगो के बीच आकर्षण  का केंद्र बने बैठे थे .मै वही पहुच  कर अपनी सारी अदाओ को का जाल बुनकर एक सलाम बड़े नजाकत से उन्हें पेश किया परन्तु अपनी सादगी से उन्होंने मुझे फिर से घायल कर दिया .महफ़िल समाप्त होते ही मैंने देव बाबु के दोस्त से बड़ी मिन्नत करके उनसे मिलवाने का एक मौका प्राप्त कर लिया .जैसे देव बाबु से सामना हुआ मैंने दिल की आरजू उनके सामने रख दिया .मैंने कहा "मुझे आपसे बे इम्तिहान प्यार हो गया है ,जब से आपको देखा है ,तब से बस आपसे मिलने की तम्मना रह गई है "
देव बाबू ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा "ये नाचीज़ आपके किसी काम का नहीं है "
मैंने कहा "ऐसा मत कहिये कम से कम एक बार तो मेरी मोहब्बत की गहराई को आजमा के तो देखिये "
देव बाबु फिर मुस्कुराते हुए बोले "आप मुझे समझ नहीं रही है ,मै एक शादी शुदा ,बाल बच्चे वाला इन्सान हूँ ,मै अपनी गृहस्थी में बहुत खुश हूँ और ऐसी बातो के विषय में विचार करने का समय नहीं है और फिर मै जहाँ रहता हूँ वहां आपके समाज से हमारे  समज में बहुत दुरी है .वहां मै आपसे बात तो क्या आपका जिक्र भी नहीं कर सकता हूँ और जिस बात की पेशकश कर रही है वो तो नामुमकिन है ,मुझे क्षमा कीजिये "कह कर देव बाबु कमरे से बहार चले गए .मै अपमानित नहीं बल्कि तिरस्कृत  महसूस कर रही थी ..मै दुखी नहीं अतृप्त थी मै असंतुस्ट थी ,छुब्द थी .इस तिरस्कार ने मेरी ही नहीं बल्कि मेरे अस्तित्व को हिला दिया था,मेरी सोच बदल गई थी . मै इतनी खुबसूरत थी जिसकी एक मुस्कुराहट के लिए लोग अपनी जागीर लुटाने को तैयार रहते थे, जिसकी की एक नज़र पाने को बेक़रार रहते थे वो खुद आज किसी की एक नज़र को व्याकुल थी ,ऐसा रूप किस काम का ?मै अकेलेपन की कोठारी में बंद होती जा रही थी 
एक दिन झुमकू जो की मेरा शागिर्द  था ,झूमता कूदता  हुआ मेरे पास आया और कहने लगा की देव बाबु ने संदेसा भिजवाया है की वो आप से मिलना चाहते है .मै ख़ुशी  से बाबड़ी हो गई थी खुद को और अपने आशियाने को दुल्हन की तरह सजा लेना चाहती थी लेकिन तभी झुमरू ने कहा की वो यहाँ नहीं आयेंगे आपको शहर से बहार बुलाया है वो भी सादे वेश भूषा  में .मै आदेशनुसार अपने गन्तव स्थान पर पहुच गई .वहा देव बाबु को अपने सामने पाकर मै तो सब भूल ही गई जो रस्ते भर सोचती आई थी की ये बोलूंगी , ये समझूंगी लेकिन मै तो अपन होशो-हवाश  ही गवा बैठी थी ,वहां पहुचने पर तो मै मंत्रमुग्ध ,वशीभूत सी बस उन्हें ही देखते रह गई ,देव बाबु की आवाज़ से मेरी तन्द्रा भंग हुई ,
वो कह रहे थे "आप कैसी है ?"इतनी  शालीनता और इज्जत  से तो आजतक किसी ने मुझे संबोधित नहीं किया था .मै तो इस इज्जत अफजाई से सरोवेर हुए जा रही थी किसी तरह दिल को काबू में कर जुबान से पूछा "आखिर आपको हमारी याद आ ही गई "
देव बाबु बोले "मैंने सुना है अज कल आप अपने काम के साथ ना-इंसाफी  कर रही है ,देखिये भगवन ने हम सब को इस दुनिया में एक मकसद से भेजा है ,जिसके जिम्मे जो काम है उसे पूर्ण ईमानदारी से करना हमारी जिमेदारी है "
मैंने कहा "इतनी बड़ी बड़ी बातो का मुझे ज्ञान नहीं पर इतना मालूम है जिस काम में दिल न लगे उसे नहीं करना चाहिए ,और मेरा दिल अब आपके सिवा किसी और काम में नहीं लगता न ही दिल इजाजत देता है ,हाँ यदि आप एक   मौका दे तो आपके खिदमत में जान  निकल कर रख दू
इसबात को सुनकर  अपने परचित अंदाज में उन्होंने कहा "क्या तुम अपनी दुनिया ,अपना जहान,वो मौहौल ,वो आराम मेरी खातिर त्याग सकती हो ?मेहनत करके इज्जत की जिंदगी गुजार सकती हो ?
मैंने कहा "मै सब कुछ कर सकती हूँ लेकिन क्या आप मुझे अपनाएंगे?
ये तो हम तुम्हे पहले भी बता चुके है की ये संभव नहीं है लेकिन हम तुम्हे समाज में अपने और दुसरो की नजरो में इज्जत देखना चाहते है ,अगर आ सको तो कल आ जाना 
मै बिना कहे ही  उनकी अनकही बातो  को  और मुझे में उलझा उनके  मन का हाल  समझ चुकी थी ,उनको भी मुझसे प्यार हो गया था  लेकिन जिसको वो दुनिया के सामने तो क्या मेरे सामने भी स्वीकार करने से हिचकिचा रहे थे .इसमें फैसला लेने जैसी तो कोई बात थी नहीं बस जरुरत  भर  का सामान बांध लिया और उस सुनहरे  पल का इंतजार करने लगी जिसमे मेरी जिंदगी एक नई करवट लेगी
देव बाबु ने मुझे शहर से दूर एक जगह पर जीने का मकसद दिया .उन्होंने मुझे यह स्कूल जो की बच्चो का होस्टल भी था इसे संभालने की जिमेदारी दी .हलाकि ये बहुत ही कठिन काम था मेरे लिए परन्तु मेरे प्यार को पाने का यही एक मात्र रास्ता था .उनके प्रेम को पाना था तो ये तो करना ही था यही मेरे प्रेम की परीक्षा थी ,अपने सजना के प्रीत को पाने को यही मेरी पहली और आखरी सीढ़ी था जिसे हर हाल में मुझे चढ़ाना था
पांच साल के अथक प्रयास के बाद मैंने अपने मकसद को पा  लिया था .मेरे स्कूल होस्टल को सरकारी मान्यता  प्राप्त हो गया था इसमें देव बाबु ने मेरा पूरा साथ दिया था
आखिर एक दिन देव बाबु को मैंने कहा की आपने जो मुझे कहा मैंने कर दिखाया ,अब आप मुझे अपना एक परिवार दे दीजिये"
ये सुनकर वो कुछ  पलो के लिए चुप रहे फिर कहा "जो कुछ मेरा है ,वो सब तुम्हारा भी तो  है ,क्या तुम मेरे बच्चो को अपना नहीं मानती?"
मै शादी तुम से नहीं आकर सकता ,ऐसा नहीं है की मै डरता हूँ लेकिन मै अपनी पत्नी ,प्रेमिका या बच्चो को किसी प्रकार का सामाजिक तिरस्कार या मानसिक चोट नहीं पहुचना चाहता हूँ"
मैंने तुम संग प्रीत लगाई   है जिसकी मैंने पूरी इज्जत रखी है और प्रेम की इज्जत बरक़रार रखना  ही प्रीत की रीत है ,प्यार का मकसद सिर्फ शादी या शारीरिक जरुरत नहीं होना चाहिए ,अगर तुम से शादी कर भी लू तो इस समाज में तुम्हारा स्थान दूसरी औरत का होगा जो कही न कही तुम्हे भी लज्जित करता रहेगा इसलिए इस प्यार को प्यार ही रहने दो रिश्ते का कोई नाम न दो तो बेहतर रहेगा आगे तुम्हारी मर्जी"
इसके बाद मैंने कभी भी देव बाबु से शादी का जिक्र नहीं किया हम युही एक रूहानी रिश्ते में कैद परिंदे की तरह उन्मुक्त गगन में विचरते रहे
फिर जब मुझे देव बाबू के देहांत का खबर मिला तो मुझे उनके कहे कथन याद आये "मेरा परिवार भी तो तुम्हारा ही है "इसलिए मैंने कोई महानता का कोई काम नहीं किया है बल्कि अपनी जिमेदारी का पालन किया है ,तुम सब मेरे हो , अपने हो .हम सब चुप थे .सबो के मन में अलग अलग सवाल सर उठा रहा था कई भाव आ और जा रहे थे मुझे सबसे ज्यादा मम्मी का के बारे में लग रहा था की पता नहीं वो क्या सोच रही होंगी उन पर क्या असर होगा इन बातो का
परन्तु मम्मी ने मौसी माँ को गले से लगा लिया और कहा की" मुझे ख़ुशी है की मेरा और तुम्हारा वाकई में कोई रिश्ता है "
मै मन ही मन बस यही सोच रही थी" इस प्रेम की अनकही कहानी में 
                                                 कितनी प्रेम की पवित्रता है
                                                 जैसे सूर्य की पहली किरन को समर्पित अर्ग होता है 
                                                जैसे मीरा के प्रेम में साधना होता है 
                                                जैसे चाँद के शीतलता में सितारों सुकून होता है 
                                                 जैसे ओस की नमी से पत्ता पनपता है "