Monday, February 27, 2012

TERI ANKHO KE SIVA DUNIYA ME RAKHA KYA HAI

जिंदगी कितनी खुबसूरत,कितनी हसीन हो जाती है जब प्यार होता है .प्यार तो है ही ऐसे शै का नाम जिसे लेते ही हर किसी के होटों पर मुस्कराहट की एक लकीर खीच जाती है .प्यार की शबनम से भींगे दो दिल दिन -दुनियां से बेखबर बस अपनी ही भावना में बहते चले जाते है ,न रास्ते की फ़िक्र ,न मंजिल की तलाश .ऐसा ही कुछ हाल था नमिता और नरेश का.खूबसूरती का बेमिशाल नमूना थी -नमिता .काली बड़ी बड़ी बोलती आँखे ,जो देखे बस उन आँखों में ही खो जाये . लम्बा कद ,कमसिन अदा ,सुनहरे बाल ,गोरा रंग .इस हुस्न की मल्लिका को जब कोई देखता हर किसी के  दिल में पहला ख्याल यही आता की भगवान ने इसे कितनी फुर्सत के पलो में अपनी सर्वोतम कृति समझ कर बनाया होगा .नमिता एक सुपर मोडल थी और एक फैशन शो के दौरान उसकी मुलाकात एक बहुत बड़े उद्योगपति नरेश सिंघानिया से हुई थी .कमी तो नरेश सिंघानिया में भी नहीं थी .किसी सपनों का राजकुमार लगता था  जाने कितनी हसिनाये भी उसकी एक निगाह के लिए तरसती थी .लेकिन नरेश सिंघानिया को जिसने पहली ही नजर में अपना दीवाना बना दिया था ,वो थी नमिता सूरी.
नमिता सूरी और नरेश सिंघानिया के प्यार के चर्चे जल्द ही अखबार की सुर्खिया बटोरने लगे क्यूंकि जब इन दोनों के दिल मिले तो इन्होने दिन दुनिया  के खौफ से बेकौफ होकर एक दुसरे के प्यार को स्वीकार किया .एक बिंदास जिंदगी के सफ़र पर वो निकल चले थे ,हर अंजाम से बे खबर ,बहती नदी की धरा की तरह उन्मुक्त प्यार के बहाव में वो दोनों भी बहे जा रहे थे .खुला आसमान भी कम पड़ने लगा था उन्हें अपने प्यार ने उड़ान भरने के लिए.प्यार तो प्यार होता है ,जिसकी  तो कोई सीमा होती है न कोई गहराई होती है .नरेश ,नमिता के प्यार में पागल उस पर अपनी खुशिया लुटता रहता .एक बार नरेश नमिता के लिए हीरे का हार लाता है और बड़े प्यार से पहनाने लगता है तो नमिता कहती है "क्या बात है इन महंगे तोहफों से मुझे रिझाने की कोशिश कर रहे हो "
तो नरेश कहता है "नहीं,मुझे जिस खूबसूरती को अपना बनाने का मौका मिला है उसे और ज्यादा सवारने की कोशिश कर रहा हूँ
दोनों प्यार के प्यार भरे दिल अपनी ही दुनिया में मगन प्रेम धुन की धुनी रमाये जा रहे थे .नरेश नमिता की आँखों का दीवाना था बस उसकी झील सी आँखों में खोया रहता था उसे नमिता की आँखों के सिवा दुनिया की कोई चीज़ नज़र नहीं आती ,अपना सूद बुद उसने इन आँखों के हवाले कर दिया था .जब इस दिन प्रति दिन बदती मुहब्बत का असर अपने चरम पर पहुँच रहा था तो इसके फैलाती जड़ो को रोकने के लिए एक शख्स का आगमन हुआ जिसका नाम था सुमन सिंघानिया ,सुमन नरेश की पत्नी थी ,नरेश और सुमन के दो बच्चे भी थे .
सुमन ने  नरेश को बहुत समझाने की कोशिश की ,उसे ये अहसास दिलाले की कोशिश की  कि उस पर दो बच्चो कि जिमेदारी है ,उसका व्यापार बीना उसके बर्बादी के कगार पर जा पहुंचा है ,परन्तु इन सारी बातो का नरेश पर कोई असर नहीं हुआ उल्टा वो सुमन से कहता है "तुम सारा रुपया ,पैसा ,धन दौलत ,जायदाद बच्चे सब ले लो बस मुझे छोड़ दो "
सुमन समझ जाती है कि ये प्यार का नशा है जो इतनी आसानी से उतरने वाला नहीं बेचारी सुमन निराश हाथो के साथ वापस  जाती है 
सुमन के लिए अब उसकी असल  परीक्षा कि घडी थी ,सही मायने में ये उसके संघर्ष का समय था उसे अब हर हाल में खुद को साबित करना था अपने से ज्यादा अपने बच्चो के लिए .सुमन का प्यार उसके बच्चे थे जिनको इस परिस्थिथि का आभास कराये बीना अछे से पालना था,सही परवरिश देनी थी .उसे पता था कि ये रास्ता आसन नहीं था परन्तु आगे तो बढ़ाना ही था क्यूंकि पीछे को तो कोई रास्ता ही नहीं जाता था.
प्यार नरेश को अर्श से फर्श पर ला रहा था .वह प्यार में तो सीढियाँ चढ़ाता जा रहा था लेकिन जिंदगी के गर्त में गिरता जा रहा था .जिसकी जिमेदार जाने अनजाने नमिता खुद महसुस करने लगी थी .सुमन ने भी जाते जाते नमिता के दिल में एक शक का नस्तर  चुभो गई थी .ये कह कर कि आदमी का प्यार तो एक पंक्षी के सामान है आज अगर इसने मेरे घोसले को छोड़ कर तुम्हारे यहाँ बसेरा बनाया है तो कल को ये चंचल मन का पंक्षी कही और भी हुस्न का दाना देखकर अपना ठिकाना कही और भी तलाश कर सकता है.मुझे नरेश से कोई शिकायत नहीं है क्यूंकि उसकी तो मति भ्रष्ट हो चुकी है और मेरे पास तो मेरे दो बच्चे है ,मेरी जीने की वजह है ,पर तुम अपना भविष्य सोचो और हो सके तो तुम ही संभल जाओ ताकि सबो की जिंदगी सुधर जाये .

नमिता बहुत पेशोपेश में थी क्यूंकि नरेश ने जब उससे अपने प्यार का इजहार किया था तो उसने अपने आप को एक खुली किताब की तरह नमिता के सामने खुद को खोल कर रख दिया था .नमिता से नरेश ने इतना जरुर कहा था "मुझे तुम से इस हद तक मोहब्बत हो गई है की मेरी जिंदगी की सुबह शाम तुम हो ,मेरी हर धड़कन तुम्हारे नाम से धड़कती है ,तुम मेरी रूह में  शामिल हो चुकी हो ,मैंने तुमसे प्यार किया है करता रहुँगा,तुम मेरे प्यार को स्वीकार करो या न करो ये तुम्हारी मर्जी है लेकिन मेरी मर्जी पर अब मेरा बस नहीं रहा "इसी मासूमियत पर तो मर मिटी थी नमिता हवास
नमिता जब भी नरेश को समझाने की कोशिश करती ,उसे उसकी जिमेदारी का अहसास करने की कोशिश करती ,नरेश का एक ही कहना था होता था की मुझे कुछ भी करने को कहो पर एक पल के लिए भी मुझे अपनी आखो से मुझे जुदा मत करो ,मै दीवाना हूँ इन आँखों का इन उठती -गिरती पलको का
सुमन ने नमिता को बताया की व्यापार नरेश के व्यक्तिगत व्यवहार की वजह से काफी नुक्सान उठा रहा है और अगर यही हाल रहा तो एक दिन चाहे सुमन कितनी भी कोशिश कर ले व्यापार ख़तम हो जायेगा .सुमन की हर कोशिश के बाबजूद वो व्यापार को वो रुतबा नहीं दिला पा रही जो नरेश की वजह से था क्यूंकि को सिर्फ रूपए पैसे से नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष के विश्वास की भी जरुरत होती है और अब तो घर के सदस्यों को भी नरेश की कमी महशुस    होने लगी है .
नमिता को इस बात की गंभीरता समझ  रही थी इसलिए नमिता अपने दूर जाने की धमकी पर नरेश को ऑफिस जाने को मजबूर कराती है लेकिन नरेश की भी एक शर्त होती है की नमिता भी हर पल उसके साथ रहेगी .नमिता शर्त मान लेती है और नरेश का साथ देने के लिए हर पल उसके साथ साये की तरह रहने लगाती है
लेकिन ये बात ऑफिस कर्मचारी ,बिजनेस एसोसियेट को नागवार गुजरने लगती है क्यूंकि नरेश का लिया हुआ कोई भी निर्णय अब सही परिणाम नहीं दे रहा था और सब को लगता था की इसकी वजह नमिता है और कही न कही नमिता भी यह महसूस करने लगी थी.वो जब भी नरेश को कुछ समझाने की कोशिश की वो व्यापार पर ध्यान दे तो नरेश का यही कहना होता -नमिता ,तुम्हारी आँखों के सीवा अब मुझे किसी भी चीज़ की समझ नहीं रही.मुझे तुमसे प्यार है और मेरी सोच तुम तक ही सीमित होकर रह गई है 
                                                    नमिता हकीकत समझ चुकी थी लेकिन उसके प्यार का ये अंजाम होगा उसने ऐसा तो कभी नहीं चाहा था की नरेश उसके प्यार में गर्दिश का सितारा बन जाये .उसका प्यार कही बदनाम  हो जाये .जो लोग उसे इज्जत की निगाह से देखते है वही हंसी का पात्र बना कर उसका मजाक  बनाय.न जाने ऐसे कितने ही खयालो को हकीकत का रूप न मिल जाय इसलिए अपने प्यार की इज्जत ,,दुनिया में प्यार की हैसियत को बरक़रार रखने के लिए वो एक ठोस इरादा करती है और कही चली जाती है
                                               नरेश पागलो की तरह उसे तलाशने की तमाम कोशिशो में लग जाता है लेकिन उसकी सारी कोशिशे असफल साबित होती है .कुछ दिनों के बाद नरेश को एक उपहार मिलाता है नमिता की तरफ से .नरेश उसे बहुत उत्साह के साथ चूमता हुआ खोलता है लेकिन उसे खोलते ही उसके हाथ -पाव ठन्डे हो जाते है ,उफ़ !ये क्या ,उसमे तो नमिता की वही दो आँखे थी जिसका नरेश दीवाना था .हाय राम ये तुने क्या कर दिया नमिता !
फिर      तो नरेश की आंखे पत्थर की हो गई ,वो बचा कूचा भी होश भी गवा बैठा.नरेश पागल हो गया .बच्चे अपने पापा की इस अवस्था को देख खौफ से रोने लगते है ,बुड़े माँ-बाप अपनी जिंदगी का आज सबसे मजबूर दिन को जीने मजबूर थे .सुमन भी रो रही थी ,वह हर जतन कर रही थी की किसी तरह से नरेश ठीक हो जाये पर सब बेकार क्यूंकि नरेश बेहोशी में भी एक ही बात दोहराय जा रहा था -तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है .....!
 


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